aap ek लम्हा hai

zindagi jab bhi teri bazm mein laati hai humein
yeh zamiin chand se behtar nazar aati hai humein

शहरयार

यूँ ज़िंदगानी को हमने लम्हे लम्हे में जीया है
करीब से कभी फ़ासले से कभी बेदिली से जीया है

दीदार आपका ऐसी दीवानों की महफ़िल में पाया
जहाँ हर किसी ने आपकी आँखों से मय पिया है

आपके ज़िक्र पर ऐसा तारीफों का सिलसिला हुआ
यह कैसा असर आपने ज़माने पर कर दिया है

ज़माने से झूठ आप से झूठ खुद से भी झूठ बोल देंगे
उस खुदा से क्या छुपाए जिसने आपको हमें दिया है

पिया हमसे ना तो इज़हार ना ही इकरार हो पाएगा
पर बाखुदा आपसे मोहब्बत बेंतिहा किया है

फिर भी यह मोहब्बत यह दीवानगी एक दिन तो ढल जाएगी
आप वो लम्हा बन रह जाना जो हमने बंदगी से जीया है

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