aap ek लम्हा hai

zindagi jab bhi teri bazm mein laati hai humein
yeh zamiin chand se behtar nazar aati hai humein

शहरयार

यूँ ज़िंदगानी को हमने लम्हे लम्हे में जीया है
करीब से कभी फ़ासले से कभी बेदिली से जीया है

दीदार आपका ऐसी दीवानों की महफ़िल में पाया
जहाँ हर किसी ने आपकी आँखों से मय पिया है

आपके ज़िक्र पर ऐसा तारीफों का सिलसिला हुआ
यह कैसा असर आपने ज़माने पर कर दिया है

ज़माने से झूठ आप से झूठ खुद से भी झूठ बोल देंगे
उस खुदा से क्या छुपाए जिसने आपको हमें दिया है

पिया हमसे ना तो इज़हार ना ही इकरार हो पाएगा
पर बाखुदा आपसे मोहब्बत बेंतिहा किया है

फिर भी यह मोहब्बत यह दीवानगी एक दिन तो ढल जाएगी
आप वो लम्हा बन रह जाना जो हमने बंदगी से जीया है

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khayaal खुदा का

किसी शख्स ने हमसे एक खूबसूरत बात कही थी -“ज़िंदगी क्या है? यह तो औरों के दुआओं से ही फ़लती-फ़ूलती है”। उस पल मैंने हँसकर उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था, मगर आजकल उनके लफ्ज़ एकाएक कौंध जाते है। मैंने तसव्वुर ही नहीं किया था की किसी दिन मैं उन शब्दों को अपने ख्यालों के अभिव्यक्ति में इस क़दर सम्मिलित करूंगी। मेरे विचारों के दुनिया में एक नया सूर्योदय हुआ है। जो दिल हताशा और दर्द से परिपूर्ण हुआ करता था, वह अब उम्मीद और प्रेम के राहों से दूर भटकता नहीं।

ज़िन्दगी अजीब करवट लेती है। इस शख्स को मैंने किस किस क़दर रुस्वा नहीं किया था, उनसे नफरत करने की बात करती थी। मगर आखिर मैं महफ़िल में उनकी तारीफ़ करती ही पायी गयी। उनसे मिलकर अनजान थी की मेरे नज़रों में उनके लिए इतनी इज़्ज़त और उनकी बातों का मुझपर ऐसा गहरा असर होने वाला था। हयात है ही कुछ उलझी हुई।

अब उस ख़ास शख्स के ख़याल पर लौट जाती हूँ: बेशक मुझे पूरे तरीके से यक़ीन हो गया है की दुआओं बिन हमारी ज़िन्दगी कुछ भी नहीं है। छोटी उम्र से मैं मशकूक थी कि मैं खुदा में यक़ीन करती हूँ या नहीं, मगर वक़्त के गुज़रते मेरे काफिराने ख़याल मिटने लगे और सभी गुमान यक़ीन में तब्दील होने लगे। ऐसे ख्यालों के जगह एक परमात्विक विश्वास जगने लगा जिसने मुझे इस जीवन के हर कड़वे मोड़ पर सहारा और हर परेशान रात में राहत दी है।

हम मुसलमान नहीं है मगर हम इस लिखावट का अंजाम अल्हम्दुलिल्लाह कहकर करेंगे क्यूंकि इस लफ्ज़ ने हमें सुकून ही सुकून दिया है। जीसस, अल्लाह, कृष्णजी सब कहने के नाम होते है; खुदा तो वहीँ है जिन्होंने मेरे दर्द को तराशा है और मेरे पैरों तले हर दिन करार की दरी बिछा दी है। मेरा मज़हब से कोई वास्ता नहीं। मज़हब कहने को अच्छा लगता है मगर मेरे खुदा एक है और मैं उनमें यक़ीन करती हूँ। खुदा मेरे दिल में बसते है, मेरे भजन या तस्बीह में नहीं। मुझे खुदा पर ऐतबार है।

ॐ अरहम। Amen ✝ अल्हम्दुलिल्लाह।