इबादत zindagi mein

aaj ibaadat ruubaruu ho gayi

jo maangi thi uss dua se guftaguu ho gayi

~ संजय लीला भंसाली

यह ज़िन्दगी मुझे जैसे मिली मैं उसे वैसे ही कैसे मंज़ूर कर सकती हूँ ? क्या मैं अपने आस-पास की दुनिया को बदलने के क़ाबिल नहीं? क्या मैं ऐसे करने की हक़दार नहीं हूँ? खुदा ने हमें दिल भी दिया है और ज़हन भी, तब मैं हर काम किसी एक से ही क्यों करूँ? आखिर मैं ज़माने में रुस्वा होने के खौफ में क्यों जियूँ? अगर मैं किसी चीज़ से असहमत हूँ तो शिक़वे करने से मैं क्या हासिल कर लूंगी – अगर मैं वो चीज़ें खुद बदल दूँ तब ही खुद की नज़रों में मेरा आत्मसम्मान होगा। मुझे खौफ-ऐ -खुदा है मगर खौफ-ऐ -ज़माना नहीं। मैं अब वहीँ करुँगी जो मैं चाहती हूँ। 

कितने अलग अलग तरह के लोग यह जहां से गुज़रे हैं। मैंने आसपास की दुनिया को ग़ौर से देखा तो दो तरह के लोग नज़र आये – कोई ऐसा जो खुदा के अस्तित्व से ग़फल और दूसरी तरफ वह जो पूरी बंदगी से सजदे में झुका हुआ है।वो मेरे जैसे खुदा के जस्तजु में है। मगर इस शख्स ने इबादत की रस्में एक अलग शिद्दत से निभायी है। मैंने, शायद नहीं। 

मंदिर के पास से चलूँ तो सुरीले भजन मेरे कानों में गूंजते है। नारियल और प्रसाद की मीठी खुशबु हवाओं में लहराती है। तभी कभी आगे रस्ते में मस्जिद आ जाता है तो मैं बाहर ही खड़ी रह जाती हूँ। अंदर जाने के लिए मैं बेताब हूँ, मगर मुझमें ऐसे करने की मजाल ही नहीं। अज़ान की बुलंद आवाज़ सुनकर एक अलग सुकून मिलता है। मैं भी उन लोगों में शुमार होना चाहती हूँ जो बड़े तादादों में एक ही फर्श पर एक ही दुआ मांगने में मशरूफ है। कुछ देर मैं उनको मोहब्बत से देखती हूँ, फिर मैं वापिस घर लौट जाती हूँ। 

मेरे घर में मैंने खुद का ही आशियाना बनाया है – मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर सब अपने कमरे को ही समझ रखा है। मेरे लिए इबादत कुछ अलग मायने रखती है। न ही इसके लिए कोई नियमित वक़्त और न ही खुद पर कोई ज़बरदस्ती है; मैं जब चाहती हूँ तभी खुदा को पुकार लेती हूँ। मेरे दृष्टिकोण में इबादत जितनी अर्थपूर्ण है उतनी सरल भी।

इबादत एक ऐसी सदा है जो मुसीबत के सामने आने पर मेरे दिल के अँधेरे पनाहों से खुद-ब-खुद निकल जाती है। यह मन के खौफ से भरते ही लब पर यूँही आ जाती है। इबादत एक दरख्वास्त है, दुआ है, उम्मीद भी है, आस भी है। जब आप किसी की मदद करते हो या खुदा के सदा खिदमत करते रहने की कसम खाते हो, वह इबादत है। इबादत उन अल्फ़ाज़ों तक सीमित नहीं जो मुश्किल वक़्त में आप खुदा के दर पर खटखटाकर फुसफुसाते हो, न ही उस पल तक निहित जब आप कुछ चाहते या मांगते हो। सब्र भी इबादत है, शुक्र भी इबादत है। माफ़ी भी तो इबादत का एक अनमोल रूप है; जब आप खुदा के बन्दों से माफ़ी मांगते हो या फिर उनको माफ़ करते हो तब आप खुदा की नज़रों में हो, और खुदा की प्यार से परिपूर्ण नज़रों में किया जाने वाला हर नेक काम इबादत है, दोस्तों। 

हमारे ज़िन्दगी के हर मोड़ पर इबादत का मौका है – कदम उठा कर तो देखो। इबादत को अपनी फितरत में इस क़दर शुमार करो कि इसे करते वक़्त सोचना तक न पड़े। इबादत को समझो, यह आपको कामयाब बनाएगी। इबादत की शक्ति का अहसास करो। इबादत करो, इबादत को महसूस करो।  

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khayaal खुदा का

किसी शख्स ने हमसे एक खूबसूरत बात कही थी -“ज़िंदगी क्या है? यह तो औरों के दुआओं से ही फ़लती-फ़ूलती है”। उस पल मैंने हँसकर उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था, मगर आजकल उनके लफ्ज़ एकाएक कौंध जाते है। मैंने तसव्वुर ही नहीं किया था की किसी दिन मैं उन शब्दों को अपने ख्यालों के अभिव्यक्ति में इस क़दर सम्मिलित करूंगी। मेरे विचारों के दुनिया में एक नया सूर्योदय हुआ है। जो दिल हताशा और दर्द से परिपूर्ण हुआ करता था, वह अब उम्मीद और प्रेम के राहों से दूर भटकता नहीं।

ज़िन्दगी अजीब करवट लेती है। इस शख्स को मैंने किस किस क़दर रुस्वा नहीं किया था, उनसे नफरत करने की बात करती थी। मगर आखिर मैं महफ़िल में उनकी तारीफ़ करती ही पायी गयी। उनसे मिलकर अनजान थी की मेरे नज़रों में उनके लिए इतनी इज़्ज़त और उनकी बातों का मुझपर ऐसा गहरा असर होने वाला था। हयात है ही कुछ उलझी हुई।

अब उस ख़ास शख्स के ख़याल पर लौट जाती हूँ: बेशक मुझे पूरे तरीके से यक़ीन हो गया है की दुआओं बिन हमारी ज़िन्दगी कुछ भी नहीं है। छोटी उम्र से मैं मशकूक थी कि मैं खुदा में यक़ीन करती हूँ या नहीं, मगर वक़्त के गुज़रते मेरे काफिराने ख़याल मिटने लगे और सभी गुमान यक़ीन में तब्दील होने लगे। ऐसे ख्यालों के जगह एक परमात्विक विश्वास जगने लगा जिसने मुझे इस जीवन के हर कड़वे मोड़ पर सहारा और हर परेशान रात में राहत दी है।

हम मुसलमान नहीं है मगर हम इस लिखावट का अंजाम अल्हम्दुलिल्लाह कहकर करेंगे क्यूंकि इस लफ्ज़ ने हमें सुकून ही सुकून दिया है। जीसस, अल्लाह, कृष्णजी सब कहने के नाम होते है; खुदा तो वहीँ है जिन्होंने मेरे दर्द को तराशा है और मेरे पैरों तले हर दिन करार की दरी बिछा दी है। मेरा मज़हब से कोई वास्ता नहीं। मज़हब कहने को अच्छा लगता है मगर मेरे खुदा एक है और मैं उनमें यक़ीन करती हूँ। खुदा मेरे दिल में बसते है, मेरे भजन या तस्बीह में नहीं। मुझे खुदा पर ऐतबार है।

ॐ अरहम। Amen ✝ अल्हम्दुलिल्लाह।