yeh तकदीर ka kaisa khel

tujh se qismat mein miri surat-e-qufl-abjad

tha likha baat ke bante hi juda ho jaana

मिर्ज़ा ग़ालिब

इस दीवानगी का अल्फाज़ों में सिमट जाना कैसे भूले
बेताबी से शेर पर शेर लिखते जाना कैसे भूले

ओ’ ज़ालिमा आपकी बेदर्द अदाएं आपकी बेखुद बातें
और नाराज़ होकर हम पर बरस जाना कैसे भूले

उस बात पर हमारा लाचार हो जाना बेबस हो जाना
फिर दहलीज़-ए-खुदा पर रातभर अश्क बहाना कैसे भूले

वो गिले वो शिक़वे वो हुमारा आपसे रूठ जाना
और आपका शौक़ से हूमें पास बुलाना कैसे भूले

आपका वो बिखर जाना और आपके कोरे सादे रूप में
हूमें रूहानियत की झलक नज़र आना कैसे भूले

आपका बज़्म में समाना आपका दिल से यूँ लग जाना
और हमारा खिलना हुमारा संवर जाना कैसे भूले

फिर महफ़िल में आपका हर दम हमारा नाम पुकारना
आपकी हर तारीफ़ पर हुमारा यूँ शरमाना कैसे भूले

हमारे मज़ाल की इंतिहा आपके निगाह की इलतेजा
और आपकी हर फरियाद पर जान लुटाना कैसे भूले

आपको मुतासिर करने की हुमारी हर नादान कोशिश
आपके सामने हमारा बदल जाना कैसे भूले

कभी हम बिछड़ ना जाए कहीं यह बात बिगड़ ना जाए
हर पल ऐसे ख़यालों का सताना कैसे भूले

यह माजरे यह सिलसिले यह अजब सितम ज़रीफ़ी
हमारा हर पल कशमकश में पड़ जाना कैसे भूले

आपका वो बरसात-ए-प्यार और निगाह-ए-शौक़ कैसे भूले
ऐ खुदा उनके मोहब्बत का यह फसाना कैसे भूले

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