tumhara ruuthna tamhiid tha afsana-e-gham ka
zamaana ho gaya hum se mizaaj-e-dil nahin milta
मख़मूर दहलवी
वो हुमारे शेरों में रहने के काबिल नहीं है
जिनकी वफ़ा खुदा की रहमत से हासिल नहीं है
चमकता सूरज भी सिमट जाता है काली रात में
उनको दिल से भुला देना उतना मुश्क़िल नहीं है
कश्मकश में छोड़ जाता है दिल का दस्तूर-ए-उलफत
पर मेरे इश्क़ के सिलसिले में वो शामिल नहीं है
खुदा जो नवाज़ेंगे अब हम वही अपना लेंगे
हम भी उनके लिए कोई फक़ीर कोई साइल नहीं है
दुनिया में कितने राह कितने रहगुज़र और भी है
जान ले ऐ दिल उनके मोड़ पर तेरी मंज़िल नहीं है
उनकी याद मिटाने के लिए यह गाज़ल भी कह दी
फिर क्यूँ उनकी मौजूदगी से यह दिल गाफिल नहीं है