yeh जावेदान si aas

अफ़्सुर्दगी की लपक बेहद खौफनाक है। मेरा दिल तो इसकी चपेट में फिसलते फिसलते बचा है। जब मैंने खुद को मायूसी के क़फ़स से रिहा कर दिया, मुझे हर हिदायत में प्रकाश की लहर ही नज़र आई। यह दुनिया अब तक हसीं है और खुदा अब भी महरबान। खुदा की देहलीज़ पर सर ख़म जो सुकून मिलता है उसकी कोई इंतिहा ही नहीं होती है। मेरे रूह ने इतनी बेइंतिहा राहत महसूस की है और ऐसे मुक़द्दस विचारों का सकारात्मक असर यह हुआ कि आज मेरे दिल में एक अमर सी आस है। इतनी उम्मीद है एक हसीं मुस्तक़बिल के लिए।

आज जब गौर से एक जलते-बुझते दिए को देखा तब मेरे ज़हन में कुछ गंभीर ख्यालों ने आकार लिया। मेरी आस भी तो इस जलते दिए के तरह दिल के पनाहों में रौशन रही है। हम भी बिलकुल मोमबत्ती के तरह होते है; ज़िन्दगी भर जलते रहते है। ज़िन्दगी में खटके आते रहेंगे। जैसे आंधियां की कहर उस दिए के आग को बुझाते बुझाते नहीं बुझा पाती है, उसी तरह हम भी हर परेशानी का सामना करते जाते हैं। पर आखिर हर मोमबत्ती पिघलकर बुझ ही जाती है, और हम भी अलग नहीं। किसी न किसी दिन बेशक हम सब मौत की काली आग़ोश में इस क़दर समां जाएंगे कि हमारे सभी ख़याल, जज़्बात और करतूत ख़ाक में मिल जाएंगे।

हम सब तो मोमबत्ती के तरह पिघल जाते हैं, पर आस तो उस आग की तरह जलती है। तो यह आस क्यों बुझे? आस तो जावेदान है, यह ज़िंदगीभर जलते रहती है। इस सोच में डूबकर मुझे मेरे दादा क घर की याद आ गयी। नीचे की दूकान से एक बार मैं मोमबत्ती खरीद के लायी थी। पर जब मेरी बेहेन ने उसे फूँक मार कर बुझाया वह पल दो पल में खुदबखुद फिरसे जल उठी। उसे देखते देखते मैं असमंजस में पड़ गयी थी। क्या वो पूरी तरह से बुझ नहीं पायी थी? मैंने फिर से फूँक मारी मगर हर बार जब मैं उसे बुझाती वह फिर जल जाती! फिर मेरी नज़र एक काग़ज़ पर पड़ी जो मोमबत्ती के साथ आया था। मैं अनजाने में “रीलाइटेबल कैंडल” खरीद ले आयी थी। बेशक मेरी आस उस ख़ास मोमबत्ती के आग की तरह जावेदान है, बुझाने पर भी बुझती नहीं!

मैं इससे वाक़िफ़ ही नहीं थी कि ऐसे चीज़ें भी दूकान में मिलती है। इंसानों ने किस किस कमाल की चीज़ों का इज़ाद किया है!

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khayaal खुदा का

किसी शख्स ने हमसे एक खूबसूरत बात कही थी -“ज़िंदगी क्या है? यह तो औरों के दुआओं से ही फ़लती-फ़ूलती है”। उस पल मैंने हँसकर उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था, मगर आजकल उनके लफ्ज़ एकाएक कौंध जाते है। मैंने तसव्वुर ही नहीं किया था की किसी दिन मैं उन शब्दों को अपने ख्यालों के अभिव्यक्ति में इस क़दर सम्मिलित करूंगी। मेरे विचारों के दुनिया में एक नया सूर्योदय हुआ है। जो दिल हताशा और दर्द से परिपूर्ण हुआ करता था, वह अब उम्मीद और प्रेम के राहों से दूर भटकता नहीं।

ज़िन्दगी अजीब करवट लेती है। इस शख्स को मैंने किस किस क़दर रुस्वा नहीं किया था, उनसे नफरत करने की बात करती थी। मगर आखिर मैं महफ़िल में उनकी तारीफ़ करती ही पायी गयी। उनसे मिलकर अनजान थी की मेरे नज़रों में उनके लिए इतनी इज़्ज़त और उनकी बातों का मुझपर ऐसा गहरा असर होने वाला था। हयात है ही कुछ उलझी हुई।

अब उस ख़ास शख्स के ख़याल पर लौट जाती हूँ: बेशक मुझे पूरे तरीके से यक़ीन हो गया है की दुआओं बिन हमारी ज़िन्दगी कुछ भी नहीं है। छोटी उम्र से मैं मशकूक थी कि मैं खुदा में यक़ीन करती हूँ या नहीं, मगर वक़्त के गुज़रते मेरे काफिराने ख़याल मिटने लगे और सभी गुमान यक़ीन में तब्दील होने लगे। ऐसे ख्यालों के जगह एक परमात्विक विश्वास जगने लगा जिसने मुझे इस जीवन के हर कड़वे मोड़ पर सहारा और हर परेशान रात में राहत दी है।

हम मुसलमान नहीं है मगर हम इस लिखावट का अंजाम अल्हम्दुलिल्लाह कहकर करेंगे क्यूंकि इस लफ्ज़ ने हमें सुकून ही सुकून दिया है। जीसस, अल्लाह, कृष्णजी सब कहने के नाम होते है; खुदा तो वहीँ है जिन्होंने मेरे दर्द को तराशा है और मेरे पैरों तले हर दिन करार की दरी बिछा दी है। मेरा मज़हब से कोई वास्ता नहीं। मज़हब कहने को अच्छा लगता है मगर मेरे खुदा एक है और मैं उनमें यक़ीन करती हूँ। खुदा मेरे दिल में बसते है, मेरे भजन या तस्बीह में नहीं। मुझे खुदा पर ऐतबार है।

ॐ अरहम। Amen ✝ अल्हम्दुलिल्लाह।

दिल्लगी ya bedili

tumhara ruuthna tamhiid tha afsana-e-gham ka

zamaana ho gaya hum se mizaaj-e-dil nahin milta

मख़मूर दहलवी

वो हुमारे शेरों में रहने के काबिल नहीं है
जिनकी वफ़ा खुदा की रहमत से हासिल नहीं है

चमकता सूरज भी सिमट जाता है काली रात में
उनको दिल से भुला देना उतना मुश्क़िल नहीं है

कश्मकश में छोड़ जाता है दिल का दस्तूर-ए-उलफत
पर मेरे इश्क़ के सिलसिले में वो शामिल नहीं है

खुदा जो नवाज़ेंगे अब हम वही अपना लेंगे
हम भी उनके लिए कोई फक़ीर कोई साइल नहीं है

दुनिया में कितने राह कितने रहगुज़र और भी है
जान ले ऐ दिल उनके मोड़ पर तेरी मंज़िल नहीं है

उनकी याद मिटाने के लिए यह गाज़ल भी कह दी
फिर क्यूँ उनकी मौजूदगी से यह दिल गाफिल नहीं है