aur to koi bas na chalega hijr ke dard ke maaron ka,
sub.h ka hona duubhar kar de, rasta rok sitaaron ka
इब्न -ऐ -इंशा
जब मेरे तमाम इश्क़ के सिलिसले अधूरे रह गए, मैंने शिकस्त होकर यह ग़ज़ल लिखी
ऐ मोहब्बत तूने मेरा क्या हाल कर दिया
नादान इस दिल को किस तरह मलाल कर दिया
क्या हुनर उनकी काजल लदी निगाहों का
कैसे एक लम्हे में हूमें घायल कर दिया
कश्मकश में छोड़ गया दिल का दस्तूर-ए-उलफत
उन्हें पा भी ना पाए भूलना मुहाल कर दिया
उनके बिना गुमराह थे पाकर गुमराह रहे
ऐ इश्क़ तूने ऐसे हूमें निढाल कर दिया
हर रोज़ उन्हीं के तरफ कदम जाते रहे
जब हमने उनसे परहेज़ का ख़याल कर दिया
हर दास्तान-ए-उलफत का अंजाम हिज्र से क्यूँ हुआ
हमने गिरकर खुदा से यह सवाल कर दिया